नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।
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१ नवरात्री उत्सव का चौथा दिन शक्तिरूपों के महत्वपूर्ण अवतारों में से एक को समर्पित है। जिसे देवी कूष्माण्डा कहा जाता है
२ यह माना जाता है कि देवी कूष्माण्डा ने अपने सिर्फ एक स्मित हास्य से पुरे ब्रह्मांड का निर्माण किया
३ लोकप्रिय कथा के अनुसार, देवी कूष्माण्डा चाहती थी की सूर्य अपनी ऊर्जा को ब्रम्हांड में मुक्त करें जो उस समय अस्तित्वहीन और अंधकारमय था
४ इसलिए देवी ने सूर्य के अंतर्भाग में प्रवेश किया और अपने प्रकाश को हर दिशा में फैलाया
५ देवी का स्वरुप इतना उज्ज्वल है कि सूर्य उनके शरीर से चमक लेता है
६ उनको आठ या दस हाथों से चित्रित किया जाता है और वह शेरनी पर सवारी करती नजर आती है
७ माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है
८ वह अपनी कांति के माध्यम से सूर्य को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे उन्हें सूर्य भगवान को नियंत्रित करने की शक्ति मिलती है।
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